राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां। Rajasthan kee pramukh lok deviyaan

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां - 

इस लेख मे हम आपको राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां के बारे मे विस्तार से बताएगे। राजस्थान मे अनेक महिलाओं के त्याग भक्ति शौर्य के लिए जानी जाती है। इन महिलाओं के त्याग भक्ति और शौर्य संकल्प के उदाहरण प्रस्तुत किये तो राजस्थान की जनता ने इन्हे लोक देवियों माताओं के रूप मे पूजा करने लगे। नवरात्रा मे इन देवियों के मेले भरते है। जिसमे लाखों की संख्या मे भक्त इन देवियों के दर्शन करने आते है। राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां के बारे मे आये जाने। 

1- करणी माता -

करणी माता का जन्म सुआप जोधपुर मे 20  सितम्बर 1387 ई.( वि0स0 1444) को हुआ था। इनके पिता का नाम मेहाजी चारण तथा माता का नाम देवल बाई था। इनके बचपन का नाम रीद्धि बाई था। इनका विवाह बीकानेर साठी के निवासी देपाजी बेतु के साथ हुआ था। परन्तु रीद्धि बाई ससुराल नही गई थी तब देपाजी के साथ अपनी छोटी बहिन गुलाब कुंवर को भेज दिया था। इसी गुलाब कुंवर के लाखन नाम का पुत्र पैदा हुआ था। जिसको करणी माता ने गोद लिया था। करणी माता ने जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव अपने हाथों से रखी। जनश्रुति अनुसार कहते है कि राव शेखा सुल्तान कैद मे थे तथा उनकी लड़की की शादी थी। बताया जाता है कि शादी से पहले राव शेखा को करणी माता ने घर पहुँचा दिया था। करणी माता चारणों की कुल देवी मानी जाती है। करणी माता को चूहों की देवी भी कहा जाता है। इनके मंदिर मे सफेद चूहा पाया जाता है जिसे काबा कहते है। चील काे भी करणी माता का रूप माना जाता है। करणी माता के मंदिर को मठ कहते है। माता के जो प्रसाद चढाया जाता है उसे चिरंजा कहते है। करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर देशनोक बीकानेर मे स्थित है। जिसका निर्माण राव बिका जी ने करवाया था। माता करणी की कृपा से ही 1465 ई0 मे अक्षय तृतीया को राव बीका ने बीकानेर बसाया था। करणी माता ने देशनाेक कस्बा बसाया था। माता करणी बहुत सारी गाये रखती थी तथा इन गायों का ग्वाला दशरथ मेघवाल था। करणी माता बीकानेर के जांग्लू नामक स्थाान पर खेजड़ी वृक्ष के नीचे दही मंथन करती थी। उस खेजड़ी वृक्ष को नेहड़ी वृक्ष कहते है। मंदिर मे सावण-भादो नामक दो कड़ाही रखी हुई है। माता का मेला चैत्र व आश्विन नवरात्रों मे भरता है। जिसे चेनणी चेरी या सेवकों का मेला कहते है। करणी माता ने 151 वर्ष बाद 1539 ई0 मे चैत्र शुक्ल नवमी को बीकानेर के घिनेरू की तलाई नामक स्थान पर अपनी देह त्याग दी थी।

2- कैला देवी -

अंजनी माता के नाम से प्रसिद्ध तथा अग्रवाल, मीणा, व गुर्जरों की अराध्य देवी है। कैलादेवी पूर्वी राजस्थान की अराध्य देवी है तथा टेढे़ मुख वाली देवी भी कहते है। जो यादव राजवंश की कुल देवी मानी जाती है। बताया जाता है कि द्वापर में कंस ने देवकी की 8वी संतान का वध करना चाहा तो यह लड़की अन्तर्ध्यान हो गई तथा करौली जिले में कासीसिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर विराजमान हो गई। कैलादेवी का मेला लक्खी मेला कहलाता है। जो चैत्र शुक्ल अष्टमी व आश्विन शुुुक्ल अष्टमी तक आयोजित होता हैे। मेले के अवसर पर कैला देवी के भक्त लांगूरिया गीत गाते है तथा लांगूरिया नृत्य करते है। कैला देवी ने कैदार ऋृृषि को दर्शन दिये थे।

3- जीण माता-

इनका वास्तविक नाम जेवन्ता बाई था। जीण माता का जन्म चुरू जिले के धांधू गांव मे राजपूत परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम धांधल जी तथा भाई का नाम हर्ष था। जीण माता शेखावटी क्षेत्र की अराध्य देवी है। जीण माता को मधुमक्खियों की देवी भी कहा जाता है। मीणा जन जाति के लोग भी इसको अराध्य देवी मानते है। जीण माता का मंदिर रैवासा गांव सीकर मे हर्ष पहाड़ी पर है। जीण माता की अष्टभुजी (आदमकद) प्रतिमा पर अढ़ाई प्याले शराब चढा़ई जाती थी। अब वर्तमान मे इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। जीण माता का मैला प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन नवरात्रा मे लगता है। कहते है कि जीण माता अपनी भोजाई के साथ पानी लेने कुंए पर जाती है, घर वापिस आने पर हर्ष ने अपनी पत्नी का घड़ा पहले उतरा देता है तो जीण माता नाराज होकर हर्ष पहाड़ी पर जो सीकर मे स्थित है वहां जाकर समाधिस्त हो जाती है। जो जीण माता के रूप मे पूजित हुई। लोक साहित्यों मे जीण माता का गीत सबसे लम्बा माना जाता है।  करूणा से ओत-प्रोत इस गीत को चिरंजा कहते है। मुगल शासक औरंगजेब जीण माता के मंदिर को तोडना चाहता था लेकिन मधुमक्खियों ने मुगल सेना को मंदिर के पास नही आने दिया तो औरंगजेब ने यह चमत्कार देखकर कहा कि देवी  मै आपके लिए प्रत्येक वर्ष सवामण तेल भेजुगा। इस स्थान को भंवराथल भी कहते है।

4- शिला देवी -

कछवाह राजवंश की अराध्य देवी शिला माता है। आमेर के राजा मान सिंह ने प्रथम शिला देवी माता की प्रतिमा को 16वी शताब्दी मे पश्चिम बंगाल से राजा केदार को हराकर वहां से इस प्रतिमा काे लाकर आमेर मे स्थापित किया था। शिला देवी की अष्टभुजी प्रतिमा महिशासुर मर्दिनी के रूप मे स्थापित है। माता शिलादेवी के प्रतिमा पर अन्न का भोग लगाते है। इस कारण अन्नपूर्णा देवी भी कहलाती है। शिला देवी का मेला चैत्र व आश्विन नवरात्रों मे भरता है। शिलादेवी के भगतों को शराब व जल चरणामृत दिया जाता है।

5- आई माता/ विलाड़ा माता

सिरवी जाति के किसानों की कुल देवी आई माता है। इनका वास्तविक नाम जीजा बाई था। इसे नवदुर्गा का अवतार मानते है। माडु मालवा का सुल्तान जीजा बाई से शादी करना चाहता था तो जीजा बाई मालवा से विलाड़ा आ गई थी। यहा आकर इसने नीम के वृक्ष के नीचे वि0स0 1526 ई0 को आई पंथ चलाया। इनकी पूजा प्रत्येक माह की शुक्ल द्वितिया को होती है। आई माता का प्रमुख मंदिर विलाड़ा जोधपुर मे स्थित है। इसके दीपक की ज्योति से केसर टपकती है। आई माता के मंदिर को बडेर कहते है।आई माता के मंदिर मे कोई प्रतिमा नही होती है। सिरवी जाति के लोग इसके मंदिर को दरगाह कहते है। इस माता के अनुयायी 11 गांठो वाला धागा धारण करते है। आई माता रामदेवी की शिष्या थी।     

6- रानी सती 

रानी सती का वास्तविक नाम नारायणी देवी था। रानी सती अग्रवाल समाज की कुल देवी है। रानी सती को दादी जी के नाम से भी जाना जाता है। रानी सती के पति का नाम तनधन दास था। जिसकी हत्या हिसार के सैनिकों ने कर दी थी तो रानी सती ने चण्डी का रूप धारण कर लिया तथा उन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। तथा स्वंय पति के साथ सती हो गई थी। रानी सती का प्रमुख मंदिर उदयपुुर वाटी झुझुनु में है। यहां प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष अमावस्या को मेला भरता है।

7- शीतला माता    

शीतल माता को चेचक निवारक देवी, सेढ़़ल माता, बच्चों की रक्षिका देवी, मावड़ी माता इत्यादि उपनामों से जाना जाता है। यह कछवाहों व कुम्हारों की आराध्य देवी है। इसके पुजारी कुम्हार होते है तथा इसका वाहन गधा होता है। इस देवी को भोग ठण्डे भोजन का लगाया जाता है। जिसे बास्योड़ा कहा जाता है। शीतला  माता की पूजा शीतला अष्टमी को खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होती है। शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंंदिर कहते है। शीतला माता का प्रमुख मंदिर चाकसु जयपुर मे स्थित है। जहां शीतलाष्टमी को गंधो का मेला भरता है।

8-सकराय माता

यह देवी खण्डेल वालों की कुल देवी है। जिससे सब्जियों वाली माता कहते है। सकराय माता ने एक बार अकाल के दौरान लोगों के लिए कद-मूल फल सब्जियों की व्यवस्था की थी तथा कालान्तर मे यह देवी शाकम्बरी कहलाई। सकराय माता का मेला (उदयपुर वाटी) मे आश्विन व चैत्र नवरात्रों मे आयाजित होता है।

9- सच्चियाय माता 

  यह औसवालों की कुल देवी है। इस माता का मंदिर औसियां जोधपुर मे हैै। सच्चियाय माता को सम्प्रदायिक सद्भाभावना की देवी  मानते है। इस देवी की प्रतिमा आधी भूमि के अन्दर तथा आधी बाहर है। सच्चियाय माता को महिषासूर मर्दिनी का सात्विक रूप मानते है।

10-ब्राह्मणी माता

ब्राह्मणी माता का प्रमुख मंदिर सोरसन बांरा मे है। यह कुम्हारों की कुल देवी है। सोरसन बारां मे इस देवी की पीठ का श्रृंंगार किया जाता है तथा पीठ को भोग लगाया जाता है। अर्थात पीठ की पूजा होती है। बारां जिले माघ शुक्ल सप्तमी को हाड़ौती क्षैत्र का सबसे बड़ा गधों का मेला लगता है।

11- जमुवाय माता

कछवाह राजवंश की कुल देवी है। इसका जन्म कछवाह राजवंश मे हुआ था। इसके पिता का नाम दुल्हेराय ( ढोला) तथा माता का नाम मारनी/ मारू था। जमुवाय माता के बचपन का नाम बुडवाय था। इसकी बचपन मे ही मृत्यु हो गई थी। मृत्यु के कुछ समय बाद बुडवाय जमुवाय माता के रूप मे प्रकट हुई। इसी कारण जयपुर का रामगढ़ कस्बा जमुवा रामगढ़ कहलाया।

12- चामुण्डा माता

बताया जाता है कि कालिका माता ने चण्ड-मुण्ड राक्षसों का वध किया था ताे इसे चामुण्डा माता कहने लगे। चामुण्डा माता प्रतिहारों की कुल देवी है। मारवाड़ के राठौड़ चामुण्डा माता को आराध देवी मानते है। चामुण्डा माता का मंदिर जोधपुर मे है। इस मंदिर पर 1857 ई0 मे अकाशीय बिजली गिरने से कुछ भाग क्षतिग्रस्त हो गया था। नया मंदिर मारवाड़ महाराजा तख्त सिंह ने बनवाया था।

13- तनोट माता

इस माता का मंदिर तनोट जैसलमेर मे है। इस मंदिर का निमार्ण 9वीं शताब्दी मे तनुराव भाटी ने करवाया था।  तनौट माता को थार की वैष्णों/रूमाल वाली देवी भी कहते है। तनौट माता को सैनिको की देवी कहते है। क्योकि सन् 1965मे भारत-पाक युद्ध मे इस देवी ने भारतीय सैनिको की रक्षा की थी। इस युद्ध मे भारतीय सैना विजय हुई थी। इस मंदिर के सामने विजय स्तम्भ बनाया गया था।

14-सुगाली माता

आहुवा पानी के ठाकुरों की कुल देवी सुगाली माता है। आहुवा ठाकुर कुशाल सिंह की कुल देवी है। सुगाली माता को 1857 की क्रांंति की अराध्य देवी मानते है। इस देवी के 10 सिर तथा 54 हाथ है। 20 जनवरी 1858 को कर्नल हौम्स के नेतृत्व मे अग्रेंजो ने इस मूर्ति को लूटा था। वर्तमान मे यह मूर्ति पाली संग्राहालय मे सुरक्षित है।

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